यह घटना कुछ समय पहले की है, जिसका उल्लेख मैं यहां करना आवश्यक समझता हूं। एक व्यक्ति अपने मित्र के साथ मेरे पास आया। वह अपनी अनेक प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त था। मैंने उसे बिठाया और आने का कारण पूछा। उसने धीरे-धीरे अपनी समस्यायें बताई और फिर इनसे मुक्ति प्राप्त करने का उपाय पूछा। मैंने उसे कुछ उपाय बताये। अब तक उसके साथ आया व्यक्ति जो उसका मित्र था, चुपचाप बैठा था, मेरे द्वारा उपाय बताने पर बोला कि पंडित जी; आपने जो उपाय बतायें हैं, क्या वास्तव में उनसे कोई लाभ मिलेगा ? मैंने उसे पहली बार ध्यान से देखा। वह कुछ अधिक समझ वाला लग रहा था। मैंने अनुमान लगा लिया कि जो कुछ उपाय उसके मित्र को बताये हैं, उन पर इसे विश्वास नहीं है । इसलिये मैंने तुरन्त कहा कि अगर यह व्यक्ति उपाय करेगा तो इसे लाभ अवश्य होगा किन्तु तुम करोगे तो लाभ बिलकुल भी नहीं होगा। उसने पूछा कि ऐसा क्यों ? मैंने कहा कि इस व्यक्ति को मेरे ऊपर विश्वास है, मेरे द्वारा बताये गये उपायों पर भी विश्वास है, इसलिये जब यह उपाय करेगा तो पूरी श्रद्धा, आस्था तथा विश्वास के साथ करेगा । इसलिये इसे अवश्य लाभ होगा और इसकी समस्यायें भी कम होकर दूर हो जायेंगी। इसके विपरीत तुम्हें किसी भी उपाय पर विश्वास नहीं है, इसलिये अगर तुम किसी उपाय को करोगे तो उसमें श्रद्धा, आस्था और विश्वास का पूरी तरह से अभाव होगा। परिणामस्वरूप तुम्हें किसी प्रकार का लाभ मिल नहीं सकता। उसने फिर से तर्क किया कि इसे लाभ मिल ही जायेगा, इसकी क्या गारंटी है ? मैंने कहा कि यह तुम्हारा मित्र है इसलिये तुम्हें तो पता चल ही जायेगा कि इसे लाभ मिला कि नहीं। मैंने फिर उसके मित्र से कहा कि तुम्हें जो उपाय बताये हैं, उन्हें पूरी आस्था और विश्वास के साथ करना। इसके साथ ही जो भी तुम्हारा काम है, उसे भी तत्परता से करते रहना । फिर जो परिणाम आयें, पहले अपने इस मित्र को बताना और फिर मुझे भी बताना। अगर मेरे पास आना हो तो अपने इस मित्र को भी अपने साथ ले आना । उसने सहमति से सिर हिलाया और प्रणाम करके वे चले गये ।
इस घटना के लगभग दो महीने बाद की बात है। वह दोनों फिर मेरे पास आये। जिस व्यक्ति ने उपाय किये थे, उसका नाम श्रीकांत था, जिसका चेहरा बता रहा था कि वह काफी प्रसन्न है। उसने आते ही मेरे चरण स्पर्श किये। उसके मित्र ने भी पांवों को हाथ लगाया। फिर वे मेरे सामने बैठ गये। मेरे कुछ बोलने से पूर्व ही श्रीकांत बोल पड़ा कि पंडित जी, आपने जो उपाय बताये थे, वे बहुत लाभदायक रहे। मेरी काफी समस्यायें दूर हो गई हैं। काम भी ठीक चल रहा है। इस बारे में मैंने सब कुछ अपने इस मित्र को बता दिया है। यह अपने पहले किये व्यवहार पर दुःख प्रकट कर रहा था। आपसे क्षमा मांगने आया है। कृपया इसे क्षमा कर दें। इसके बाद लगभग आधा घंटा दोनों मेरे पास बैठे रहे और बातें करते रहें। फिर चले गये। वास्तव में श्रीकांत दो बातों से परेशान था। पहली बात यह थी कि उसे अपने व्यापार में निरन्तर घाटा हो रहा था, जिससे उस पर कर्ज चढ़ गया था। दूसरी बात यह थी कि इस समय उसके कुछ विरोधी उसके लिये समस्यायें खड़ी कर रहे थे। मैंने उसे व्यापार वृद्धि के लिये दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना करने की सलाह दी थी और दूसरे उपाय के रूप में उसे अपने व्यवसाय स्थल पर श्री सुन्दरकाण्ड पाठ करने का सुझाव दिया था । उसने मेरे बताये अनुसार किया। वह अपनी समस्या से बहुत अधिक परेशान था, इसलिये उसने पूरी श्रद्धा, आस्था और विश्वास के साथ उपाय किये। इसके बाद ही उसे उपायों का चमत्कार देखने को मिला । व्यापार की हानि रुक कर लाभ मिलने लगा था। उसके विरोधी कैसे शांत हो गये थे, इसका उसे स्वयं भी पता नहीं चला। अभी उसे इतना आर्थिक लाभ तो नहीं मिला था कि कर्ज से मुक्ति मिल पाती किन्तु इन दो महीनों में उसे जिस प्रकार से लाभ मिला था, उससे उसे इतना विश्वास तो अवश्य हो गया था कि अगर इसी प्रकार से साल भर तक काम चलता रहा तो बाकी समस्यायें भी समाप्त हो जायेंगी ।
अब यहां पर कुछ प्रश्न उत्पन्न हो सकते हैं जो उन लोगों को परेशान कर सकते हैं जो इन उपायों पर विश्वास नहीं करते हैं। आधुनिक विचारों के कारण अनेक लोग इन उपायों पर तथा उपायों में काम आने वाली सामग्रियों पर सहज ही विश्वास नहीं कर पाते। यहां मैं इस विषय पर कुछ और लिखूं, इससे पहले यह बता देना आवश्यक समझता हूं कि पूरे विश्व में हमारा देश ही एकमात्र ऐसा देश है जहां भोगवादी संस्कृति की अपेक्षा अध्यात्म पर अधिक काम हुआ है । यह अध्यात्म हमारे विचारों में परिपक्वता लाकर ईश्वर से जोड़ता है। बाकी देशों में भोगवादी विचारधारा ही अधिक रूप से पोषित हुई है। हमारे यहां ईश्वर तक अपनी आवाज को पहुंचाने के अनेक माध्यम जो प्राचीनकाल से चले आ रहे हैं और तब तक चलेंगे जब तक यह सृष्टि अस्तित्व में रहेगी। इसलिये हम जब भी किसी कठिनाई में आते हैं तो तत्काल उससे मुक्ति पाने के लिये उपायों का सहारा लेते हैं। आश्चर्य वाली बात तो यह है कि जब हम पूरी आस्था, श्रद्धा और विश्वास के साथ उपाय करते हैं, तो हमें उसके लाभ मिलने लग जाते हैं। कुछ लोग इनको किसी चमत्कार से कम नहीं मानते हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इन पर किसी भी प्रकार से विश्वास करने को तैयार नहीं होते हैं। ऐसे लोगों की मानसिकता प्रायः पश्चिमी संस्कृति से ही अधिक प्रभावित होती दिखाई देती है।
जहां तक आस्था, श्रद्धा और विश्वास का प्रश्न है तो मैं स्पष्ट बता देना चाहता हूं कि जो इनकी उपेक्षा करके किसी उपाय को करता है, उसे कभी भी किसी प्रकार का लाभ नहीं मिल सकता। ऐसे लोगों को मेरा यही कहना है कि वे जब तक अपने भीतर किये जाने वाले उपायों के प्रति विश्वास और आस्था को उत्पन्न नहीं कर लेते, तब तक उन्हें किसी प्रकार का उपाय नहीं करना चाहिये। जब हम श्रद्धा से उपाय करते हैं तो पत्थर का छोटा सा टुकड़ा भी शिवलिंग का रूप ले लेता है और उसकी पूजा – साधना करने पर भगवान को साक्षात दर्शन देने पड़ते हैं।
॥ हरि ॐ ॥